
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में शिक्षा के अधिकार (RTE) जैसे नेक मकसद वाली योजना पर भ्रष्टाचार की परतें चढ़ गई हैं. करोड़ों रुपये के गबन और फर्जीवाड़े से जुड़ा यह मामला न केवल व्यवस्था की पोल खोलता है बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि बच्चों की शिक्षा के नाम पर आखिर कब तक राजनीति और लालच का खेल चलता रहेगा। सूरजपुर से शिक्षा के क्षेत्र में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने लोगों को हैरान कर दिया है. जिले में करीब 55 स्कूल न तो वास्तविक रूप में मौजूद हैं और न ही उनमें कोई छात्र पढ़ रहे हैं, फिर भी कागजों में इन्हें पूरी तरह चालू दिखाया गया. इस फर्जीवाड़े के जरिए शिक्षा के नाम पर शासन से करोड़ों रुपये का गबन किया गया.इससे शिक्षा विभाग की विश्वसनीयता और बच्चों के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. यह मामला न केवल प्रशासन के लिए चुनौती बन गया है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की जरूरत को भी उजागर करता है.

कांग्रेस का बयान
शिक्षा के अधिकार के तहत फर्जी स्कूलों को राशि दिए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि सूरजपुर जिला में शिक्षा के अधिकार के तहत 55 ऐसे स्कूलों को गरीब बच्चों को पढाने के राशि का भुगतान किया गया है।वो 55स्कूल सिर्फ कागजों पर है।इन स्कूलों में शिक्षा के अधिकार के तहत जिन बच्चों का नाम दर्ज किया गया है वह फर्जी हैं एक ही परिसर पर दो-दो स्कूल का पता मिला है। यह सब शिक्षा विभाग के अधिकारियों एवं निजी स्कूल संचालकों के मिलीभगत से हुआ है।

यहाँ गरीब बच्चों के शिक्षा के अधिकार को छीना गया है। कांग्रेस ने गरीब बच्चों को शिक्षा देने के लिए शिक्षा का अधिकार कानून लाया था।उसका भी पलीता भाजपा की सरकार में लगाया गया है।प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि सूरजपुर जिला में शिक्षा के अधिकार में फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद अब सरकार को प्रदेश में शिक्षा के अधिकार के तहत जिन निजी स्कूलों को राशि भुगतान की गई है उसका भौतिक सत्यापन कराना चाहिए। सूरजपुर जिला में हुई फर्जीवाड़ की उच्चस्तरीय जांच हो। जिम्मेदार लोगों के खिलाफ एफआईआर हो शिक्षा विभाग के अधिकारियों, शिक्षा के अधिकार के तहत भर्ती प्रक्रिया में शामिल नोडल अधिकारियों की भूमिका की भी जांच हो कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाये।